भारतीय संविधान में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन उपबंधों के बारे में प्रावधान दिए गए हैं. भारत में 1950 से 2018 तक 125 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है. भारत में राष्ट्रपति शासन सबसे पहले पंजाब में 1951 में लगाया गया था. अब तक लगभग सभी राज्यों में 1 या एक से अधिक बार इसका प्रयोग किया जा चुका है. भारत में सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन केरल और उत्तर प्रदेश में 9-9 बार लगाया गया है. इसके बाद पंजाब में 8 बार जबकि बिहार और मणिपुर में 7 -7 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है
संविधान में 3 प्रकार के आपातकाल की बात कही गयी है.
1. राष्ट्रीय आपतकाल: अनुच्छेद 352
2. राष्ट्रपति शासन : अनुच्छेद 356
3. वित्तीय आपातकाल: अनुच्छेद 360
अनुच्छेद 356 के तहत प्रदेश में लगने वाले राष्ट्रपति शासन
किसी भी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन, तब लगाया जाता है जब उस प्रदेश का शासन संविधान में दिए गए उपबंधों के अनुसार नहीं चलता है.
इसे दो अन्य नामों से भी जाना जाता है;
1. संवैधानिक आपातकाल
2. राज्य आपातकाल
नोट : संविधान ने किसी राज्य में संवैधानिक संकट पैदा होने की दशा में “आपातकाल” शब्द का प्रयोग नहीं किया है.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव किस प्रकार होता है?
किन आधारों पर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है?
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत दो आधारों पर राष्ट्रपति शासन घोषित किया जा सकता है;
1. यदि राष्ट्रपति; राज्यपाल की रिपोर्ट को स्वीकार कर लेता है कि राज्य सरकार संविधान के उपबंधों के अनुसार नही चल रही है.
2. यदि कोई राज्य, केंद्र द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने या उसे लागू करने में विफल रहता है.
राष्ट्रपति शासन के प्रभाव की घोषणा का जारी होने की तारीख से 2 माह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा (सामान्य बहुमत से) अनुमोदन हो जाना चाहिए.
यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन 6 माह तक चलता रहेगा. इस प्रकार 6-6 माह करके इसे 3 वर्ष तक लगाया जा सकता है.
राष्ट्रपति शासन के दौरान क्या-क्या परिवर्तन हो जाते हैं;
1. राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देता है.
2. राष्ट्रपति, राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों की शक्तियां प्राप्त हो जातीं हैं.
3. राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का शासन चलाता है. यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गयी घोषणा को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है.
4. राष्ट्रपति, घोषणा कर सकता है कि राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग संसद करेगी.
5. संसद; राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित करती है.
6. संसद को यह अधिकार है कि वह राज्य के लिए कानून बनाने की शक्ति राष्ट्रपति अथवा उसके किसी नामित अधिकारी को दे सकती है.
7. जब संसद नही चल रही हो तो राष्ट्रपति, “अनुच्छेद 356 शासित राज्य” के लिए कोई अध्यादेश जारी कर सकता है.
👍राष्ट्रपति को सम्बंधित प्रदेश के उच्च न्यायालय की शक्तियां प्राप्त नही होतीं हैं और वह उनसे सम्बंधित प्रावधानों को निलंबित नही कर सकता है.
राष्ट्रपति अथवा संसद अथवा किसी अन्य विशेष प्राधिकारी द्वारा बनाया गया कानून, राष्ट्रपति शासन के हटने के बाद भी प्रभाव में रहेगा.परन्तु इसे राज्य विधायिका द्वारा संशोधित या पुनः लागू किया जा सकता है.
किसी भी प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का लगना, केंद्र की सत्ताधारी दल का शासन स्थापित होना है. राष्ट्रपति शासन एक ऐसी संवैधनिक स्थिति है जिसमें जनता की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ कर दिया जाता है और उस पर राष्ट्रपति के माध्यम से केंद्र सरकार का अप्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित हो जाता है।
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